Monday, March 14, 2011

नंगे पांव मेरा दोस्त










पीले रंग की बुशर्ट
और पीले रंग की पैंट
'गरीब'
भूखा, नंगा गरीब
ये आम राय थी लोगों की 
लेकिन मेरा दोस्त नंगा नहीं था
ताकिद!
सिर्फ उसके पांव नंगे थे...
वो नंगा नहीं था,
परिस्थितियां थीं जो नंगी थीं,
और नंगा था उसका समाज
जो उसके ईर्द-गिर्द खड़ा था...
जूते वालों का समाज
और इन सबके बीच...
नाचती,ठिठोली करती नंगी थी उसकी किस्मत
कह रहे थे लोग
कैसी किस्मत लेकर आया है...
दिल्ली की चिलचिलाती धूप में इसके पास जूते भी नहीं हैं...
देखो!
शायद देखने वालों ने ये नहीं देखा था
कैसे उसके बापू ने थामी थी उसकी उंगली
और उस भीड़ में कैसे कातर थी उसकी मां की नज़रें
जो लगातार उसके नंगे पांवो को निहार रही थी
कहीं किसी जूते से दब न जाए, इस खयाल में...
कैसे था बदकिस्मत मेरा दोस्त
कैसे था वो भूखा,नंगा गरीब
कैसै...
सिर्फ इसलिए कि उसने नहीं पहने थे जूते?

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