Sunday, March 13, 2011

बच्चों के यौवन पर दाग लगने से रोकिए!


समय के साथ तेजी से बदल रहा लोगों का मन-मिजाज। परंतु पृथ्वी व चांद, सूरज वहीं है, ठीक इसी तरह स्त्री-पुरुष में आज भी भेदभाव कायम है। स्त्री चाहे जिस मुकाम पर पहुंच जाए, उसे पुरुष के सामने झुकना ही पड़ता है। अभी के दौर में आधुनिकता के नाम पर लड़कियां जींस-शर्ट अधिक पसंद कर रही हैं। इसी तरह हाईस्कूल तक पहुंचते ही अधिकतर लड़कियों का झुकाव युवा लड़कों की ओर हो जा रहा है। कॉलेज में पढऩे वाली लड़की का यदि ब्यॉय फ्रेंड नहीं है तो इसे अपमान समझा जा रहा है। वहीं, लड़के तो लड़कियों से दोस्ती करने के लिए बेचैन दिखते हैं। किशोर से युवा की तरफ बढऩे के साथ ही विपरीत सेक्स की ओर रुझान आम बात है। परंतु दिक्कत वहां से शुरू होती है, जब कोई अठारह वर्ष का युवक व युवती एक-दूसरे के करीब आने की कोशिश करते हैं। करीब ये दोस्ती में नहीं बल्कि पति-पत्नी की तरह संबंध बनाने के लिए आते हैं। इस वक्त इन्हें मां-बाप, भाई-बहन या फिर समाज का कोई ख्याल नहीं आता। इनका कैरियर बर्बाद हो जाएगा, ये कहीं के नहीं रहेंगे, इस बात का होश भी कच्ची उम्र के चलते इन्हें नहीं रहता। संबंध बनाने के दो-तीन महीने के बाद बिजली तब गिरती है, जब लड़की को पता चलता है कि वह मां बननेवाली है। मारे शर्म के या तो वह खुदकुशी की कोशिश करती है या फिर गर्भ गिराने की बदनामी झेलती है। इसके साथ ही कलंकित होता है उसका पूरा परिवार। वहीं, लड़की का साथी या तो गायब हो जाता है, या फिर लड़की के परिवार द्वारा किए गए यौन उत्पीडऩ के केस में फंस हवालात की सजा काटता है। ऐसे कम ही खुशनसीब लड़की होती है, जिसे गर्भ ठहरने के बाद ही लड़का कबूल कर लेता है। परंतु यह उम्र शादी की नहीं होती, सो परिवार वाले इसके लिए राजी नहीं होते और अन्तत: लड़की के पास गर्भ गिराने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता। इसमें कसूर किसका है लड़की या लड़का या फिर अभिभावक, जिन्होंने बच्चों को इतनी आजादी दे रखी थी? बच्चियां बड़ी होने के साथ मां-बाप की जिम्मेवारी बढ़ जाती है। सौ में साठ फीसदी अभिभावक यह नहीं देखते कि बच्ची यदि कॉलेज गई है तो उसने कितने क्लास किए। उसके मित्रों की सूची में कौन-कौन लड़के हैं। कॉलेज कैसे जाती है, आने में विलंब क्यों हुआ, जिस विषय का वह कोचिंग करना चाहती है, क्या वास्तव में उसे जरूरत है या फिर टाइम पास? ऐसी छोटी-छोटी चीजों पर नजर रखकर बच्चों को दिग्भ्रमित होने से बचाया जा सकता है। बेटों के पिता की जिम्मेवारी भी बेटी के पिता से कम नहीं है? यदि उनका बेटा किस लड़की के साथ गलत हरकत करता है। ऐसे में बदनामी उनकी भी होती है, समाज में उनका सिर भी झुकता है। ऐसे में थोड़ी से चौकसी इस भीषण समस्या से बचा सकती है। अत: चेतिए और बच्चों को दोस्त बनाइए ताकि ये आपको अपने दिल की बात बेहिचक बता सकें। इससे आप गंभीर संकट में फंसने से बच जाएंगे। बिहार के छोटे-छोटे गांव से भी नाबालिग लड़के-लड़कियां शादी की नीयत से भागने लगे हैं। वहीं, अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि गर्भ गिरानेवालों की संख्या भी बढ़ी है।

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