Sunday, March 13, 2011

प्रकृति और मानव निर्मित त्रासदी की बढ़ती खतरनाक सहभागिता से सबक लेने की जरुरत !

जहां एक ओर जापान की इस ताजा भयंकर और दुखद प्राकृतिक आपदा ने समस्त प्राणी-जगत को एक सन्देश साफ़तौर पर दे डाला है कि मनुष्य अपनी कौशलता और सफलता के जितने मर्जी परचम लहराने का दावा कर ले, मगर उसका तथा धरा पर मौजूद अन्य प्राणियों का जीवन विकास प्रकृति की कृपा पर पूर्णतया निर्भर है, और रहेगा! जो लोग ये सोचते है कि वे इस धरा पर जितनी मर्जी मानव-बस्तियां बसा सकते है, जितने मर्जी जीवित रहने के वैकल्पिक स्रोत पैदा कर सकते है, इंसान को अमर बना सकते है, वे सरासर किसी गलतफहमी का शिकार है! वहीं दूसरी ओर प्रकृति ने मानव सभ्यता को यह भी चेताया है कि आपस में कोलेबोरेशन और सांठ-गाँठ न सिर्फ मनुष्य को ही अपितु प्रकृति को भी करना आता है, और वह मानव द्वारा खुद के लिए खोदी गई खाई के साथ मिलकर किसतरह अपनी विनाश लीला का सर्वांगीण विकास कर सकता है!

परसों और कल जहां एक तरह जापान ने दो-दो प्राकृतिक आपदाओं यानि ८.९ तीव्रता के भूकंप और प्रशांत महासागर में उठी तेज ३० फिट ऊँची सूनामी लहरों ( मुझे तो इसके नाम पर भी आपत्ति है, पता नहीं किस बेवकूफ ने इसका नाम सूनामी रखा जबकि इसका सही नाम कूनामी होना चाहिए था ) का तांडव झेला, वही तीसरी आपदा के रूप में परमाणु बिजली प्राप्त करने हेतु जापान द्वारा लगाए गए पांच परमाणु रिएक्टरों और दो परमाणु बिजलीघरों को भूकंप के तेज झटकों की वजह से तुरंत बंद कर दिया गया था, लेकिन फुकुशिमा स्थित एक रिएक्टर के पप्पिंग प्लांट में भारतीय समय के अनुसार दोपहर करीब बारह बजे जबरदस्त विस्फोट हो जाने की वजह से अफरातफरी का माहौल बन गया! हालांकि अभी तक की ख़बरों के मुताविक स्थिति बहुत ज्यादा चिंतनीय नहीं है मगर वैज्ञानिकों का कहना है कि अत्यधिक तापमान के कारण रिएक्टर के पिघलने और विकिरण का ख़तरा बना हुआ है ! और इसे हम दो प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव निर्मित आपदा के साथ सांठ-गाँठ की संज्ञा दे सकते है!

एक ओर चाहे वह चीन और उत्तरकोरिया से बढ़ता परमाणु ख़तरा ही क्यों न हो, मगर इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि जापान हमेशा से एक तीव्र भूकंप प्रभावित और संभावित क्षेत्र रहा है ! वहीं दूसरी ओर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोहरी परमाणु मार झेल चुका यह देश कैसे अपने यहाँ इतना प्लूटोनियम इक्कट्ठा करके रखने की हिमाकत कर सकता है? वह बम तो सिर्फ ५ किलो प्लूटोनियम का था जबकि आज जापान खुद के तकरीबन ४५ टन प्लूटोनियम के ढेर पर बैठा है! यह जानते हुए भी कि कभी भी ऐसी सूनामी आ सकती है, कैसे यह देश अपने समुद्री तटों पर अमेरिकी परमाणु पोतो को आमंत्रित कर सकता है, जापान की हुकूमत को इस पर गंभीर चिंतन की जरुरत है! हम भगवान् से तो यही प्रार्थना करते है कि विकिरण कम से कम हो, मगर यह कहानी अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई, ख़बरों के मुताविक जब यह विस्फोट हुआ और आपात परिस्थितियों में आस-पास की आवादी को वहाँ की सरकार ने इलाके को खाली करने के आदेश दिए तो उस इलाके से दूर भागते लोग सड़कों पर फँस गए है, क्योंकि हर कोई अपना वाहन लेकर वहाँ से दूर चले जाने को सड़क पर आ गया, और परिणामस्वरूप सड़कों पर लम्बे जाम लग गए है ! यानि कुल मिलाकर स्थिति यह है कि लोग चाहकर भी बचने का प्रयास नहीं कर सकते !

आइये अब इन सब बातों का विश्लेषण हम भारतीय परिपेक्ष में करने की कोशिश करे ! जापान एक कम आवादी वाला छोटा सा देश है, तब भी अभी तक करीब १६०० लोगो के मारे जाने और दस हजार के लापता होने की पुष्ठि हुई है, भगवान् न करे लेकिन कल्पना कीजिये कि यह अगर हमारे यहाँ हुआ होता तो मंजर क्या होता ? २६ दिसंबर २००४ की सूनामी की विनाशलीला अभी बहुत पुरानी बात नहीं हुई! खैर, जहां हम प्रकृति के इस हथियार के आगे वेबश है, वहीं हमें भी इस घटना के बाद कुछ गंभीर चिंतन की आवश्यकता आन पडी है! ज्यादा दूर न जाकर मैं दिल्ली और एनसीआर की ही बात करूंगा, जहां चार करोड़ से ज्यादा की आवादी निवास करती है! और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नरोरा स्थित परमाणु प्लांट बहुत दूर नहीं है! अगर कुछ ऐसी अनहोनी हो गई तो कहाँ जायेंगे, जब भागने के लिए सड़क ही नहीं मिलेगी ? पाकिस्तान हमारे बहुत करीब पंजाब प्रांत में अपना चौथा रिएक्टर लगा रहा है, जिस देश में कुछ भी नियंत्रण में नहीं रहता ', सोचिये कि कभी उनके जिहादियों ने उस रिएक्टर को उड़ाने की कोशिश की तो क्या उसके विकिरण से हम बच पायेंगे ? इन घटनाओं से इस मानव सभ्यता को कुछ सबक तो अवश्य ही लेने होंगे वरना ऊपर वाला ही मालिक है 

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