Saturday, May 7, 2011

क्रोध



को‌ई भी चीज जब हमारे मनोनुकूल नहीं होती है, और धीरे-धीरे सहनशक्ति भी पार हो रही हो, तो उस स्थिति को रोकने के लि‌ए प्रकृति हमारे अंदर एक विस्फोट करती है, बस-वही विस्फोट क्रोध बनकर बाहर प्रकट होता है । आज कमोवेश ज्यादातर लोग समाज में क्रोधी स्वभाव के हो ग‌ए हैं । यह अत्यन्त ही चिन्ताजनक बात है । मनोवैज्ञानिक भी इस समस्या से निदान के लि‌ए जूझ रहे हैं । 

वस्तुतः इच्छा‌ओं की पूर्ति का न हो पाना ही क्रोध का कारण है । विज्ञान क्रोध को एक ‘एनर्जी’ मानता है और ‘एनर्जी’ का यह नियम है कि एक बार वह पैदा हो जाय, तो उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है । इसका रूपान्तरण किया जा सकता है । क्रोध सबसे पहले इंसान की बुद्धि को क्षीण कर उसकी स्मरण शक्‍ति को समाप्त करता है । सोचने-समझने की शक्‍ति पूरी तरह से समाप्त हो जाती है । हर निर्णय व्यक्‍ति गलत लेने लगता है । क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होता है, और पश्चाताप से समाप्त होता है । इसलि‌ए मर्यादित व्यक्‍ति इसकी पहली चिनगारी को शुरू होने से पहले ही समाप्त करने का प्रयास करता है । क्रोध के समय व्यक्‍ति अपना आपा खो बैठता है, श्वांसों की गति इतनी तेज हो जाती है कि व्यक्‍ति सीमित श्वासों की पूंजी के तरफ अपना ध्यान ही नहीं देता है । क्रोधी व्यक्‍ति की हमेशा की चिड़चिड़ापन उसकी आयु को कम करती है । महाराक्षस क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, इसीलि‌ए शास्त्रों में भी कहा गया है -‘क्रोधो वैवस्वतो राजा।’ क्रोधी व्यक्‍ति का रक्‍त संचार बढ़ने लगता है, थुथुने फूलने लगते हैं, भृकुटि तन जाती है । जो जान लेवा भी हो सकती है । क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है । 

आ‌इये ! क्रोध से बचने के लि‌ए कुछ सरल व सहज उपायों पर हम ध्यान देंः- 

1) सबसे पहले उनके साथ न बैठें, जिनके साथ बैठने पर आपको क्रोध आता है ।
2) क्रोध के समय मन की दिशा को बदलने का प्रयास करें । चित्रादि बनाकर मन को बहलायें ।
3) ज्यादा से ज्यादा प्रकृति के बीच रहें ।
4) दिन में पानी खूब पि‌एं । सर्दी का मौसम हो तो पाँंच-छः बार और यदि गर्मी है, तो कम से कम आठ-दस बार जरूर पीएं ।
5) प्रतिदिन प्रातःकाल अपने मन को श्वॉंस-प्रश्वास की क्रिया द्वारा स्वस्थ रखने का प्रयास करें ।
6) क्रोध के समय एकान्त स्थान में चले जा‌ऍं । शवासन में लेटकर मन को शांत करने का प्रयास करें ।
7) ज्यादा मिर्च-मसाले वाले भोजन अथवा तले हु‌ए पदार्थ कम से कम लें।
8) किसी भी कार्य को जल्दबाजी में न करें । भोजन चबाकर ठीक से लें। शीत्कारी प्राणायाम करें । जीभ को दांतों के बीच हल्का दबाकर अन्दर की ओर एक-दो बार श्वास लें ।
9) ज्यादा से ज्यादा मुस्कुराने के प्रयास करें । संगीत आदि गुनगुना सकें, तो ज्यादा अच्छा होगा ।
10) ज्यादा से ज्यादा उत्पन्न होने वाली कामना‌ओं, ऐष्णा‌ओं और वासना‌ओं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करें ।
11) खुलकर हंसने का प्रयास करें और साथ ही बीती हु‌ई बात को लंबे समय तक ढोने का प्रयास न करें । वर्तमान में जीते हु‌ए व्यायाम और प्राणायाम के माध्यम से मन और मस्तिष्क को निर्मल रखने का प्रयास करें ।
12) समय-समय पर ध्यान, प्रार्थना और भक्‍ति को माध्यम बनान्

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